Tuesday, May 29, 2007

२१) नाम महिमा ऐसी जु जानो...

राग : टोडी

नाम महिमा ऐसी जु जानो ।
मर्यादादिक कहें लौकिक सुख लहे
पुष्टि कों पुष्टिपथ निश्चे मानो ॥१॥

स्वाति जलबुन्द जब परत हें जाहि में ,
ताहि में होत तेसो जु बानो ।
श्री यमुने कृपा सिंधु जानि स्वाति जल बहु मानि,
सूर गुण पुर कहां लो बखानों ॥२॥

२२) भक्त को सुगम श्री यमुने अगम ओरें....

राग : टोडी

भक्त को सुगम श्री यमुने अगम ओरें ।
प्रात ही न्हात अघजात ताकें सकल
जमहुं रहत ताहि हाथ जोरे ॥१॥

अनुभवि बिना अनुभव कहा जानही
जाको पिया नही चित्त चोरें ।
प्रेम के सिंधु को मरम जान्यो नही,
सूर कहे कहा भयो देह बोरे ॥२॥

२३) फल फलित होय फलरूप जाने...

राग : टोडी

फल फलित होय फलरूप जाने ।
देखिहु ना सुनी ताहि की आपुनी,
काहु की बात कहो कैसे जु माने ॥१॥

ताहि के हाथ निर्मोल नग दीजिये,
जोई नीके करि परखि जाने ।
सूर कहें क्रूर तें दूर बसिये सदा,
श्री यमुना जी को नाम लीजे जु छाने ॥२॥

२४) श्री यमुने पति दास के चिन्ह न्यारे...

राग : टोडी

श्री यमुने पति दास के चिन्ह न्यारे ।
भगवदी को भगवत संग मिलि रहत हैं,
जाके हिय बसत प्राण प्यारे ॥१॥

गूढ यमुने बात सोई अब जानही,
जाके मनमोहन नैनतारे ।
सूर सुख सार निरधार वे पावहीं,
जापर होय श्री वल्लभ कृपा रे ॥२॥

Thursday, May 24, 2007

२५) श्री यमुने रस खान को शीश नांऊ....

राग : सारंग

श्री यमुने रस खान को शीश नांऊ।
ऐसी महिमा जानि भक्त को सुख दान,
जोइ मांगो सोइ जु पाऊं ॥१॥

पतित पावन करन नामलीने तरन,
दृढ कर गहि चरन कहूं न जाऊं ।
कुम्भनदास लाल गिरिधरन मुख निरखत,
यहि चाहत नहिं पलक लाऊं ॥२॥

२६) श्री यमुने अगनित गुन गिने न जाई...

राग : सारंग

श्री यमुने अगनित गुन गिने न जाई ।
श्री यमुने तट रेणु ते होत है नवीन तनु,
इनके सुख देन की कहा करो बडाई ॥१॥

भक्त मांगत जोई देत तिहीं छिनु
सो ऐसी को करे प्रण निभाई ।
कुम्भनदास लाल गिरिधरन मुख निरखत,
कहो कैसे करि मन अघाई ॥२॥

२७) श्री यमुने पर तन मन धन प्राण वारो...

राग : सारंग

श्री यमुने पर तन मन धन प्राण वारो ।
जाकी कीर्ति विशद कौन अब कहि सकै,
ताहि नैनन तें न नेक टारों ॥१॥

चरण कमल इनके जु चिन्तत रहों,
निशदिनां नाम मुख तें उचारो ।
कुम्भनदास कहे लाल गिरिधरन मुख
इनकी कृपा भई तब निहारो ॥२॥

२८) भक्त इच्छा पूरन श्री यमुने जु करता....

राग : सारंग

भक्त इच्छा पूरन श्री यमुने जु करता ।
बिना मांगे हु देत, कहां लौ कहों हेत,
जैसे काहु को कोऊ होय धरता ॥१॥


श्री यमुना पुलिन रास, ब्रज बधू लिये पास,
मन्द मन्द हास कर मन जू हरता ।
कुम्भनदास लाल गिरिधरन मुख निरखत,

यही जिय लेखत श्री यमुने जु भरता ॥२॥

Wednesday, May 16, 2007

२९) रास रससागर, श्री यमुने जु जानी...

राग : गौड सारंग

रास रससागर, श्री यमुने जु जानी ।
बहत धारा तन प्रतिछन नूतन,
राखत अपने उर मां जु ठानी ॥१॥

भक्त को सहि भार हेतु जो प्रान आधार,
अति हि बोलत मधुर मधुर बानी ।
श्री विट्ठल गिरिधरन बस किये,
कौन पें जात महिमा बखानी ॥२॥

३०) भक्त प्रतिपाल जंजाल टारे....

राग : गौड सारंग

भक्त प्रतिपाल जंजाल टारे ।
अपने रस रंग मे, संग राखत सदा,
सर्वदा जोइ श्री यमुने नाम उच्चारे ॥१॥

इनकी कृपा अब, कहाँ लग बरनिये,
जैसे राखत जननी पुत्र बारे ।
श्री विट्ठल गिरिधरन संग विहरत,
भक्त को एक छीनू ना बिसारे ॥२॥

३१) श्री यमुना जी को नाम ले सोई सुभागी...

राग : गौड सारंग

श्री यमुना जी को नाम ले सोई सुभागी ।
इनके स्वरूप को, सदा चिंतन करत,
कल न परत जाय नेह लागी ॥१॥

पुष्टि मारग धरम, अति दुर्लभ करम,
छांड सगरे परम, प्रेम पागी।
श्री विट्ठल गिरिधरन ऐसी निधि,
भक्त को देत है बिना माँगी ॥२॥

३२) कौन पे जात श्री यमुने जु बरनी....

राग : गौड सारंग

कौन पे जात श्री यमुने जु बरनी ।
सबही को मन, मोहत मोहन ,
सो पिया को मन है जु हरनी ॥१॥

इन बिना एक छिन, रहत नही जीवन धन,
ब्रज चन्द मन, आनंद करनी ।
श्री विठ्ठल गिरिधरन संग आये,
भक्त के हेत अवतार धरनी ॥२॥

Tuesday, May 15, 2007

३३) श्री यमुने तुमसी एक हो जु तुमहीं....

राग : केदार

श्री यमुने तुमसी एक हो जु तुमहीं ।
करि कृपा दरस, निसवासर दीजिये,
तिहारे गुनगान को रहत उद्यम ही ॥१॥

तिहारे पाये ते, सकल निधि पावहीं,
चरण्कमल चित्त, भ्रमर भ्रमहीं ।
कृष्णदासनि कहें, कौन यह तप कियो,
तिहारे ढींग रहत है लता द्रुम ही ॥२॥

३४) ऐसी कृपा कीजिये लिजिये नाम...

राग : केदार

ऐसी कृपा कीजिये लिजिये नाम ।
श्री यमुने जग वंदिनी, गुण न जात काहु गिनी,
जिनके ऐसे धनी सुंदर श्याम ॥१॥

देत संयोग रस, ऐसे पियु है जु बस,
सुनत तिहारो सुजस पूरे सब काम ।
कृष्णदासनि कहे, भक्त हित कारने,
श्री यमुने एक छिन नहिं करे विश्राम ॥२॥

३५) श्री यमुनाजी के नाम अघ दूर भाजे...

राग : केदार

श्री यमुनाजी के नाम अघ दूर भाजे ।
जिनके गुन सुनन को, लाल गिरिधरन पिय,
आय सन्मुख ताके विराजे ॥१॥

तिहिं छिनु काज ताके सगरे सरें
जायके मिलवत ब्रजवधू समाजे ।
कृष्णदासनि कहे ताहि अब कौन डर,
जाके ऊपर श्री यमुने सी गाजे ॥२॥

३६) श्री यमुनाजी को नाम तेईजू लेहे...

राग : केदार

श्री यमुनाजी को नाम तेईजू लेहे ।
जाकी लगन, लगी नंदलाल सों,
सर्वस्व देके निकट रहे हैं ॥१॥

जिनही सुगम जानि, बात मन में जु मानि,
बिना पहिचान कैसे जु पैये ।
कृष्णदासनि कहे श्री यमुने नाम नौका ,
भक्त भवसिंधुतें योंहि तरिये ॥२॥

Saturday, May 12, 2007

३७) श्री यमुने की आस अब....

राग : कल्याण

श्री यमुने की आस अब करत है दास ।
मन कर्म बचन, कर जोरिके मांगत,
निशदिन रखिये अपने जु पास ॥१॥

जहाँ पिय रसिकवर, रसिकनी राधिका,
दोउ जन संग मिलि, करत है रास।
दास परमानंद, पाये अब ब्रजचंद,
देखी सिराने नैन मंदाहास ॥२॥

३८) श्री यमुने के साथ अब....

राग : कल्याण

श्री यमुने के साथ अब फ़िरत है नाथ ।
भक्त के मन के, मनोरथ पूरन करत ,
कहां लो कहिये इनकी जु गाथ ॥१॥

विविध सिंगार, आभूषन पहरे,
अंग अंग शोभा वरनी न जात ।
दास परमानंद पाये अब ब्रजचन्द
राखे अपने शरण बहे जु जात ॥२॥

३९) श्री यमुने पिय को....

राग : कल्याण

श्री यमुने पिय को बस तुमजु कीने ।
प्रेम के फंदते, गहिजु राखे निकट ,
ऐसे निर्मोल नग मोल लीने ॥१॥

तुमजु पठावत, तहां अब धावत
तिहारे रसरंग में, रहत भीने ।
दास परमानंद, पाये अब ब्रजचंद,
परम उदार श्री यमुनेजु दान दीने ॥२॥

४०) श्री यमुने सुखकारनी प्राण प्रतिके...

राग : कल्याण

श्री यमुने सुखकारनी प्राण प्रतिके ।
जिन्हे भूलि जात पिय, तिने सुधि करि देत,
कहाँलों कहिये इनके जु हित के ॥१॥

पिय संग गान करे, उमंगी जो रस भरे,
देत तारी कर लेत झटके ।
दास परमानंद, पाये अब ब्रजचंद
येहि जानत सब प्रेम गति के ॥२॥

४१) शरण प्रतीपाल....

राग : बिहाग

शरण प्रतीपाल गोपाल रति वर्धिनी ।
देत पती पंथ पिय कंथ सन्मुख करत,
अतुल करुनामयी नाथ अंग अर्धिनी ॥१॥

दीन जन जान रस पूंजकुंजेश्वरी ,
रमत रसरास पिय संग नीश शरादिनी,
भक्तीदायक सकल भवसिंधु तारीनी,
करत विध्वंस जन अखिल अघ मर्दीनी॥२॥

रहत नंद सुनू तट निकट नीसदीन सदा,
गोपगोपी रमत मध्य रसकंदिनी,
कृष्ण तन वरन गुणधर्म श्रीकृष्ण के,
कृष्ण लीलामयी कृष्ण सुखकंदिनी ॥३॥

पद्मजा पाय तू संगही मुररिपू,
सकल सामर्थ्यमयी पाप की खंडीनी,
कृपारस पूर्ण वैकुण्ठ पद की सीढ़ी,
जगत विख्यात शिव शेष शिर मंडीनी ॥४॥

पर्यो पद कमलतर और सब छांडके,
देख दृग कर दया हास्य मूख मंदिनी,
उभय कर जोड़ कृष्णदास विनंती करे,
करो अब कृपा कलिंदगिरी नंदिनी ॥५॥

Friday, May 11, 2007

श्याम कहा चाहतसे डोलत

राग : बिलावल

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श्याम कहा चाहतसे डोलत ।
बूजे हुते वदन दूरावत , सुधे बोल ना बोलत ॥१॥

सुने निपट अंधीयारे मंदिर, दधी भाजनमें हाथ ।
अब काहे तुम उत्तर कर हो, कोऊ संग ना साथ ॥२॥

मैं जान्यो यह मेरो घर है , तिही धोखे में आयो ।
देखतही गोरस में चेंटी , काढ्नको कर नायो ॥३॥

सुनत चतुर वचन मोहनके , ग्वालिनी मूर मुस्कानी ।
परमानंद्प्रभू हो रतीनागर , सबे बात हम जानी ॥४॥

गोकुलकी पनिहारी....

राग : टोडी

गोकुलकी पनिहारी पनिया भरण चली , बडे बडे नयना तामें खूब रह्यो कजरा।
पहेरे कसुंभी सारी अंग अंग छबी भारी , गोरी गोरी बहींयनमें मोतीन के गजरा ॥१॥

सखी सब लिए जात हस हस बुजत बात , तनहुकी सुधी भूली सीस धरे गगरा।
नंददास बलीहारी बीच मीले गिरिधारी , नयननकी सेननमें भूल गयी डगरा ॥२॥

गोवर्धनकी रहिए तर्हेती.....

राग : बिहाग

गोवर्धनकी रहिए तर्हेती श्री गोवर्धनकी रहिए तर्हेती ।
नित्यप्रति मदनगोपाललाल की, चरणकमल चित्त लैय्ये ॥१॥

तन पुलकित व्रजरज में लोटत, गोविन्द्कुंडमें न्हैय्ये ।
रसिकप्रितम हित चित्त की बातें श्री गिरिधारीजू सो कहिये ॥२॥

एक पलक जो रहिये वृंदावन.....

राग : बिहाग

एक पलक जो रहिये वृंदावन।
जन्म जन्म के पाप कटत हे कृष्ण कृष्ण मुख कहिये ॥१॥

महाप्रसाद और जल यमुना कि तनक तनक भर लइये।
सूरदास वैकुंठ मधुपुरी भाग्य बिना कहां पइये ॥२॥

दृढ इन चरण कैरो भरोसो...

राग : बिहाग

दृढ इन चरण कैरो भरोसो, दृढ इन चरणन कैरो
श्री वल्लभ नख चंद्र छ्टा बिन, सब जग माही अंधेरो । भरोसो…

साधन और नही या कलि में, जासों होत निवेरो । भरोसो….
सूर कहा कहे, विविध आंधरो, बिना मोल को चेरो । भरोसो……

नंद भवन को भूषण माई....

राग : बिलावल

नंद भवन को भूषण माई ।
यशुदा को लाल, वीर हलधर को, राधारमण सदा सुखदाई ॥

इंद्र को इंद्र, देव देवन को, ब्रह्म को ब्रह्म, महा बलदाई ।
काल को काल, ईश ईशन को, वरुण को वरुण, महा बलजाई ॥

शिव को धन, संतन को सरबस, महिमा वेद पुराणन गाई ।
‘नंददास’ को जीवन गिरिधर, गोकुल वंदन कुंवर कन्हाई ॥

आओ गोपाल श्रृंगार बनाऊ...

राग : बिलावल

आओ गोपाल श्रृंगार बनाऊ
विविध सुगंधन करो उबट्नो, पाछे उष्णजल ले जू न्हवावू ॥१॥


अंग अंगोछ गुहूं तेरी बेनी, फूलन रची रची भाल बनाऊ ।
सुरंग पाग जरतारी तोरा , रत्नखचित शिरपेच बंधाऊ ॥ २॥

वागो लाल सुनेरी छापो, हरी इजार चरनन विरचाऊ ।
पटुका सरस वैंजनी रंग को , हसली हार हमेल बनाऊ ॥ ३॥

गजमोतींन के हार मनोहर, वनमाला ले उर पहेराऊ ।
ले दर्पण देखो मेरे प्यारे , निरख निरख उर नयन सिराऊ ॥४॥

मधु मेवा पकवान मिठाई, अपने कर ले तुम्हे जिमाऊ ।
विष्णुदास को यह कृपाफल, बाललीला हो निसदीन गाऊँ ॥५॥

भोग श्रृंगार यशोदा मैया....

राग : बिलावल

भोग श्रृंगार यशोदा मैया,श्री विट्ठलनाथ के हाथ को भावें
न्हवाय श्रृंगार करत हैं, आछी रुचि सों मोही पाग बंधावें ॥

तातें सदा हों उहां ही रहत हो, तू दधि माखन दूध छिपावें ।
छीतस्वामी गिरिधरन श्री विट्ठल, निरख नयन त्रय ताप नसावें ॥

प्रात: समय श्री वल्लभसुतको...

राग : भैरव

प्रात: समय श्री वल्लभसुतको, उठतही रसना लीजे नाम ।
आनंद्कारी प्रभु मंगलकारी , अशुभहरण जन पूरण काम ॥१॥

याहि लोक परलोकके बंधु , को कही सकत तिहारे गुणगान ।
नंददास प्रभु रसिक शिरोमणि, राज करो श्री गोकुल सुखधाम ॥२॥

खिलावन आवेंगी ब्रजनारी....

राग : बिभास

खिलावन आवेंगी ब्रजनारी ।
जागो लाल चिरैया बोली, कहि जसुमति महतारी ॥१॥

ओट्यो दूध पान करि मोहन, वेगि करो स्नान गुपाल ।
करि सिंगार नवल बानिक बन, फेंटन भरो गुलाल ॥२॥

बलदाऊ ले संग सखा सब, खेलो अपने द्वार ।
कुमकुम चोवा चंदन छिरको, घसि मृगमद घनसार ॥३॥

ले कनहेरि सुनो मनमोहन, गावत आवे गारी ।
व्रजपति तबहिं चोंकि उठि बैठे, कित मेरी पिचकारी ॥४॥

फूलन की मंडली मनोहर बैठे.....

राग : सारंग

फूलन की मंडली मनोहर बैठे, जहाँ रसिक पिय प्यारी ।
फूलन के बागे और भूषण, फूलन की पाग संवारी ॥१॥

ढिंग फूली वृषभान नंदिनी, तैसिये फूल रही उजियारी ।
फूलन के झूमका झरोखा बहु, फूलन की रची अटारी ॥२॥

फूले सखा चकोर निहारत, बीच चंद मिल किरण संवारी ।
चतुर्भुज दास मुदित सहचारी, फूले लाल गोवर्धन धारी ॥३॥

फूलन की मंडली मनोहर बैठे


राग : सारंग


फूलन की मंडली मनोहर बैठे, मदन मोहन पिय राजत ।
प्रसरित कुसुम सुवासित चहुँदिश, लुब्ध मधुप गुंजारत गाजत ॥१॥

पहरे विविध भांत आभूषण, पीतांबर वैजयंती छाजत ।
देखि मुखारविंद की शोभा, रतिपति आतुर भयो अति भ्राजत ॥२॥

एकरूप बहुरूप परस्पर, वरणों कहा देख मन लाजत ।
रसिकचरण सरोज आसरो करिवे, कोटि यत्न जिय साजत ॥३॥

बात कहत रसरंग उच्छलीता



राग: सारंग

बात
कहत रसरंग उच्छलीता ।
फूलन के महल बिराजत दोउ , मन्द सुगंध निकट वहे सरिता ॥१॥
मुख मिलाय हस देखत दर्पणमें , सुंदर श्रमित उरमाल विगलिता ।
परमानन्द प्रभु प्रेम विवश भये , कही हममें सुंदर को है ललिता ॥२॥
बात कहत रसरंग उच्छलीता ।

Thursday, May 10, 2007

मैया मोहे माखन मिसरी भावे


मैया मोहे माखन मिसरी भावे ।
मीठो
दधि, मिठाई, मधुधृत, अपने करसो क्यो ना खवावे ॥१॥
कनक कटोरी दे कर मेरे, गो दोहन क्यो ना सिखावे ।
ओट्यो दूध , धेनु धोरिको , भरके कटोरा क्यो ना खिवावे ॥२॥
अजहू ब्याह करत नही मेरो, तोहे नींद कैसे आवे ।
चत्रभुज़प्रभू गिरिधरकी बतियाँ , सुनके उछंग पयपान करावे ॥३॥
मैया मोहे मकहन मिसरी भावे ।

भोरही कान्ह करत मोसो झगरो



भोर ही कान्ह करत मोसो झगरो ।
सबन छांडी करत हठ मोसो, नित्य उठ रोकी रहत है डगरो ॥१॥
गोरस दाण सुन्यो नही देख्यो , किन लिखी दियो दिखाओ कगरो ।
बिना बोहना छुवन नही देहो , यह सब छिनी खाऊ किन ससुरो ॥२॥
चुम्बत मुख उर लावत पकरत, टेव ना गयी जुकत नही अगरो ।
परमानंद सयानी ग्वालिनी, छांडी नही धरतहो पगरो ॥३॥

Saturday, May 5, 2007

मंगलाचरण


चिन्ता संतान्हान्तारो यात्त्पदाम्बुज रेनाव्हा ।
स्वियानाम तानिजचार्य्म, प्रन्मामी मुहुर्मुह ॥
यद्नुग्रहतोह जन्तुह, सर्व दुखोतिगोभावेत ।
तम्हम सर्वदा वंदे, श्रीमद वल्लभनंदनम ॥
अज्ञान तिमिरांधास्य, ज्ञानामजन शलाक्या ।
चक्शुरुन्मिलितं येन तस्मै श्रीगुरुवे नमः ॥
लक्ष्मी सहस्त्रलीलाभिः सेव्य्मन कलानिधिम ।
चतुर्भिश्च चतुर्भिश्च चतुर्भिश्च त्रिभिस्तथा ।
षड्भिर विराजते योसो, पन्चधा हृदये मम ।।