राग : कल्याण
श्री यमुने सुखकारनी प्राण प्रतिके ।
जिन्हे भूलि जात पिय, तिने सुधि करि देत,
कहाँलों कहिये इनके जु हित के ॥१॥
पिय संग गान करे, उमंगी जो रस भरे,
देत तारी कर लेत झटके ।
दास परमानंद, पाये अब ब्रजचंद
येहि जानत सब प्रेम गति के ॥२॥
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