आओ गोपाल श्रृंगार बनाऊ ।
विविध सुगंधन करो उबट्नो, पाछे उष्णजल ले जू न्हवावू ॥१॥
अंग अंगोछ गुहूं तेरी बेनी, फूलन रची रची भाल बनाऊ ।
सुरंग पाग जरतारी तोरा , रत्नखचित शिरपेच बंधाऊ ॥ २॥
वागो लाल सुनेरी छापो, हरी इजार चरनन विरचाऊ ।
पटुका सरस वैंजनी रंग को , हसली हार हमेल बनाऊ ॥ ३॥
गजमोतींन के हार मनोहर, वनमाला ले उर पहेराऊ ।
ले दर्पण देखो मेरे प्यारे , निरख निरख उर नयन सिराऊ ॥४॥
मधु मेवा पकवान मिठाई, अपने कर ले तुम्हे जिमाऊ ।
विष्णुदास को यह कृपाफल, बाललीला हो निसदीन गाऊँ ॥५॥
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