राग : बिभास
खिलावन आवेंगी ब्रजनारी ।
जागो लाल चिरैया बोली, कहि जसुमति महतारी ॥१॥
ओट्यो दूध पान करि मोहन, वेगि करो स्नान गुपाल ।
करि सिंगार नवल बानिक बन, फेंटन भरो गुलाल ॥२॥
बलदाऊ ले संग सखा सब, खेलो अपने द्वार ।
कुमकुम चोवा चंदन छिरको, घसि मृगमद घनसार ॥३॥
ले कनहेरि सुनो मनमोहन, गावत आवे गारी ।
व्रजपति तबहिं चोंकि उठि बैठे, कित मेरी पिचकारी ॥४॥
Friday, May 11, 2007
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