Sunday, February 24, 2008

नेह लग्यो मेरो श्याम सुंदरसो...

राग : काफ़ी

नेह लग्यो मेरो श्याम सुंदरसो । नेह लग्यो मेरो श्याम सुंदरसो ॥

आयो वसंत सभी बन फुले । खेतन फूली है सरसों ।

मैं पीरी पियाके विरहसो । निकसत ताण अधरसो ॥ कहो जाय बंसीवरसो ॥

फागुन में सब होरी खेलत है, अपने अपने वरसो ।

पिय के वियोग जोगन व्हे निकरी , धूर उड़ावत करसो । चली मथुराकी डगरसो ॥

ऊधो जाय द्वारका कहियो, इतनी अरज मेरी हरीसों ।

विरहव्यथासे जियरा डरत है , जबते गए हरी घरसो । दरस देखनको हों तरसो ॥

सूरदास मेरी इतनी अरज है, कृपासिंधु गिरिधरसों ।

गसेरी नदियाँ, नाव पुरानी, अबके आय उबारो सागारसो । अरज मेरी राधावरसों ॥

Tuesday, February 12, 2008

नवल वसंत नवल वृन्दावन....

राग : वसंत

नवल वसंत नवल वृन्दावन, नवल ही फुले फूल ।
नवल ही कान्ह नवल बनी गोपी, निर्तत एक ही तूल ॥१॥

नवल गुलाल उडे रंग बुका, नवल वसंत अमूल।
नवल ही छींट बनी केसरकी, चेट्त मन्मथ शूल ॥२॥

नवल ही ताल पखावज बाजत, नवल पवनके झूल।
नवल ही बाजे बाजत बहोत, कालिंदी के कूल ॥३॥