Thursday, June 21, 2007

वर्षा की अगवानी.....

राग : मल्हार
वर्षा की अगवानी , आये माई वर्षा की अगवानी।
दादुर मोर पपैया बोले, कुंजन बग्पांत उडानी ॥१॥

घनकी गरज सुन, सुधी ना रही कछु,
बदरन देख डरानी ।

कुम्भनदास प्रभु गोवर्धनधर,
लाल
भये सुखदानी ॥२॥

Wednesday, June 6, 2007

१) पिय संग रंग भरि करि किलोलें....

राग : रामकली

पिय संग रंग भरि करि किलोलें ।
सबन कों सुख देन पिय संग करत सेन,
चित्त में परत चेन जब हीं बोलें ॥१॥

अति हि विख्यात सब बात इनके हाथ,
नाम लेत कृपा करें अतोलें ।
दरस करि परस करि ध्यान हिय में धरें,
सदा ब्रजनाथ इन संग डोलें ॥२॥

अतिहि सुख करन दुख सबके हरन,
एही लीनो परन दे झकोले ।
ऐसी यमुने जान तुम करो गुनगान,
रसिक प्रियतम पाये नग अमोले ॥३॥

२) श्याम सुखधाम जहाँ नाम इनके

राग : रामकली

श्याम सुखधाम जहाँ नाम इनके ।
निशदिना प्राणपति आय हिय में बसे,
जोई गावे सुजश भाग्य तिनके ॥१॥

येही जग में सार कहत बारंबार,
सबन के आधार धन निर्धन के ।
लेत श्री यमुने नाम देत अभय पद दान,
रसिक प्रीतम प्रिया बसजु इनके ॥२॥

३) कहत श्रुतिसार निर्धार करिकें....

राग : रामकली

कहत श्रुतिसार निर्धार करिकें ।
इन बिना कौन ऐसी करे हे सखी,
हरत दुख द्वन्द सुखकंद बरखें ॥१॥

ब्रह्मसंबंध जब होत या जीव को,
तबहि इनकी भुजा वाम फरकें ।
दौरिकरि सौरकर जाय पियसों कहे,
अतिहि आनंद मन में जु हरखें ॥२॥

नाम निर्मोल नगले कोउ ना सके,
भक्त राखत हिये हार करिकें ।
रसिक प्रीतम जु की होत जा पर कृपा,
सोइ श्री यमुना जी को रूप परखें ॥३॥

४) नैन भरि देखि अब भानु तनया....

राग : रामकली

नैन भरि देखि अब भानु तनया ।
केलि पिय सों करें भ्रमर तबहि परें,
श्रम जल भरत आनंद मनया ॥१॥

चलत टेढी होय लेत पिय को मोहि,
इन बिना रहत नहिं एक छिनया ।
रसिक प्रीतम रास करत श्री यमुना पास,
मानो निर्धनन की है जु धनया ॥२॥

५) श्याम संग श्याम, बह रही श्री यमुने....

राग : बिलावल

श्याम संग श्याम, बह रही श्री यमुने ।
सुरत श्रम बिंदु तें, सिंधु सी बहि चली,
मानो आतुर अलि रही न भवने ॥१॥

कोटि कामहि वारों, रूप नैनन निहारो,
लाल गिरिधरन संग करत रमने ।
हरखि गोविन्द प्रभु, निरखि इनकी ओर,
मानों नव दुलहनीं आइ गवने ॥२॥

६) श्री यमुना सी नाही कोउ और दाता....

राग : बिलावल

श्री यमुना सी नाही कोउ और दाता ।
जो इनकी शरण जात है दौरि के,
ताहि को तीहिं छिनु कर सनाथा ॥१॥

एहि गुन गान रसखान रसना एक ,
सहस्त्र रसना क्यों न दइ विधाता ।
गोविन्द प्रभु तन मन धन वारने,
सबहि को जीवन इनही के जु हाथा ॥२॥

७) श्री यमुना जस जगत में जोइ गावे...

राग : बिलावल

श्री यमुना जस जगत में जोइ गावे ।
ताके अधीन ह्वै रहत हे प्राणपति
नैन अरु बेन में रस जु छावे ॥१॥

वेद पुराण की बात यह अगम हे,
प्रेम को भेद कोऊ न पावे ।
कहत गोविन्द श्री यमुने की जापर कृपा,
सोइ श्री वल्लभ कुल शरण आवे

८) चरण पंकज रेणु श्री यमुने जु देनी.....

राग : बिलावल


चरण पंकज रेणु श्री यमुने जु देनी ।
कलयुग जीव उद्धारण कारण,
काटत पाप अब धार पेनी ॥१॥


प्राणपति प्राणसुत आये भक्तन हित,
सकल सुख की तुम हो जु श्रेनी ।
गोविन्द प्रभु बिना रहत नहिं एक छिनु,
अतिहि आतुर चंचल जु नैनी ॥२॥

९) धाय के जाय जो श्री यमुना तीरे....

राग : मालकोंस

धाय के जाय जो श्री यमुना तीरे ।
ताकी महिमा अब कहां लग वरनिये,
जाय परसत अंग प्रेम नीरे ॥१॥

निश दिना केलि करत मनमोहन,
पिया संग भक्तन की हे जु भीरे ।
छीतस्वामी गिरिधरन श्री विट्ठल,
इन बिना नेंक नहिं धरत धीरे ॥२॥

१०) जा मुख तें श्री यमुने यह नाम आवे....

राग : मालकोंस

जा मुख तें श्री यमुने यह नाम आवे ।
तापर कृपा करत श्री वल्लभ प्रभु,
सोई श्री यमुना जी को भेद पावे ॥१॥

तन मन धन सब लाल गिरिधरन को देकें,
चरन जब चित्त लावे ।
छीतस्वामी गिरिधरन श्री विट्ठल,
नैनन प्रकट लीला दिखावे ॥२॥

११) धन्य श्री यमुने निधि देनहारी....

राग : मालकोंस

धन्य श्री यमुने निधि देनहारी ।
करत गुणगान अज्ञान अध दूरि करि,
जाय मिलवत पिय प्राणप्यारी ॥१॥

जिन कोउ सन्देह करो बात चित्त में धरो,
पुष्टिपथ अनुसरो सुखजु कारी ।
प्रेम के पुंज में रासरस कुंज में,
ताही राखत रसरंग भारी ॥२॥

श्री यमुने अरु प्राणपति प्राण अरु प्राणसुत,
चहुजन जीव पर दया विचारी ।
छीतस्वामी गिरिधरन श्री विट्ठल
प्रीत के लिये अब संग धारी ॥३॥

१२) गुण अपार मुख एक कहाँ लों कहिये.....

राग : मालकोंस

गुण अपार मुख एक कहाँ लों कहिये ।
तजो साधन भजो नाम श्री यमुना जी को
लाल गिरिधरन वर तबहि पैये ॥१॥

परम पुनीत प्रीति की रीति सब जानिके
दृढकरि चरण कमल जु गहिये ।
छीतस्वामी गिरिधरन श्री विट्ठल ,
ऐसी निधि छांडि अब कहाँ जु जैये ॥२॥

Tuesday, June 5, 2007

१३) चित्त में श्री यमुना, निशिदिन जु राखो...

राग: ललित

चित्त में श्री यमुना, निशिदिन जु राखो ।
भक्त के वश कृपा करत हें सर्वदा,
ऐसो श्री यमुना जी को हे जु साखो ॥१॥

जा मुख ते श्री यमुने यह नाम आवे,
संग कीजे अब जाय ताको ।
चतुर्भुजदास अब कहत हैं सबन सों,
तातें श्री यमुने यमुने जु भाखो ॥२॥

१४) प्राणपति विहरत श्री यमुना कूले..

राग: ललित

प्राणपति विहरत श्री यमुना कूले ।
लुब्ध मकरंद के भ्रमर ज्यों बस भये,
देखि रवि उदय मानो कमल फूले ॥१॥

करत गुंजार मुरली जु ले सांवरो,
सुनत ब्रजवधू तन सुधि जु भूले ।
चतुर्भुज दास श्री यमुने प्रेमसिंधु में,
लाल गिरिधरनवर हरखि झूले ॥२॥

१५) वारंवार श्रीयमुने गुणगान कीजे...

राग : ललित

वारंवार श्रीयमुने गुणगान कीजे ।
एहि रसनातें भजो नामरस अमृत,
भाग्य जाके हैं सोई जु पीजे ॥१॥

भानु तनया दया अति ही करुणामया,
इनहीं की कर आस अब सदाई जीजे ।
चतुर्भुजदास कहे सोई प्रभु पास रहे
जोइ श्री यमुनाजी के रस जु भीजे ॥२॥

१६) हेत करि देत श्री यमुने वास कुंजे...

राग: ललित

हेत करि देत श्री यमुने वास कुंजे ।
जहाँ निसवासर रास में रसिकवर,
कहां लों वरनिये प्रेमपुंजे ॥१॥

थकित सरिता नीर थकित ब्रजबधू भीर,
कोउ न धरत धीर मुरली सुनीजे ।
चतुर्भुजदास यमुने पंकज जानि,
मधुप की नामी चित्त लाय गुंजे ॥२॥

१७) भक्त पर करि कृपा श्री यमुने जु ऐसी...

राग: आसावरी

भक्त पर करि कृपा श्री यमुने जु ऐसी ।
छांडि निजधाम विश्राम भूतल कियो,
प्रकट लीला दिखाई जु तैसी ॥१॥

परम परमारथ करत है सबन कों ,
देत अद्भुतरूप आप जैसी ।
नंददास यों जानि दृढ करि चरण गहे,
एक रसना कहा कहो विसेषी ॥२॥

१८) नेह कारन श्री यमुने प्रथम आई...

राग : आसावरी

नेह कारन श्री यमुने प्रथम आई ।
भक्त के चित्त की वृत्ति सब जानके,
तहांते अतिहि आतुर जु धाई ॥१॥

जाके मन जैसी इच्छा हती ताहिकी,
तैसी ही आय साधजु पुजाई ।
नंददास प्रभु तापर रीझि रहे
जोई श्री यमुनाजी को जस जु गाई ॥२॥

१९) ताते श्री यमुने यमुने जु गावो...

राग: आसावरी

ताते श्री यमुने यमुने जु गावो ।
शेष सहस्त्र मुख निशदिन गावत,
पार नहि पावत ताहि पावो ॥१॥

सकल सुख देनहार, तातें करो उच्चार,
कहत हो बारम्बार जिन भुलावो ।
नंददास की आस श्री यमुने पूरन करी,
तातें घरी घरी चित्त लावि ॥२॥

२०) भाग्य सौभाग्य श्री यमुने जु देई...

राग: आसावरी

भाग्य सौभाग्य श्री यमुने जु देई ।
बात लौकिक तजो, पुष्टि श्री यमुने भजो,
लाल गिरिधरन वर तब मिलेई ॥१॥

भगवदीय संग कर बात इनकी लहें,
सदा सानिध्य रहें केलि मेई ।
नंददास जापर कृपा श्रीवल्लभ करें,
ताकें श्री यमुने सदाबस जु होई ॥२॥