राग : बिलावल
भोग श्रृंगार यशोदा मैया,श्री विट्ठलनाथ के हाथ को भावें
न्हवाय श्रृंगार करत हैं, आछी रुचि सों मोही पाग बंधावें ॥
तातें सदा हों उहां ही रहत हो, तू दधि माखन दूध छिपावें ।
छीतस्वामी गिरिधरन श्री विट्ठल, निरख नयन त्रय ताप नसावें ॥
Friday, May 11, 2007
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