राग : गौड सारंग
रास रससागर, श्री यमुने जु जानी ।
बहत धारा तन प्रतिछन नूतन,
राखत अपने उर मां जु ठानी ॥१॥
भक्त को सहि भार हेतु जो प्रान आधार,
अति हि बोलत मधुर मधुर बानी ।
श्री विट्ठल गिरिधरन बस किये,
कौन पें जात महिमा बखानी ॥२॥
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