राग : गौड सारंग
भक्त प्रतिपाल जंजाल टारे ।
अपने रस रंग मे, संग राखत सदा,
सर्वदा जोइ श्री यमुने नाम उच्चारे ॥१॥
इनकी कृपा अब, कहाँ लग बरनिये,
जैसे राखत जननी पुत्र बारे ।
श्री विट्ठल गिरिधरन संग विहरत,
भक्त को एक छीनू ना बिसारे ॥२॥
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