राग : ललित
वारंवार श्रीयमुने गुणगान कीजे ।
एहि रसनातें भजो नामरस अमृत,
भाग्य जाके हैं सोई जु पीजे ॥१॥
भानु तनया दया अति ही करुणामया,
इनहीं की कर आस अब सदाई जीजे ।
चतुर्भुजदास कहे सोई प्रभु पास रहे
जोइ श्री यमुनाजी के रस जु भीजे ॥२॥
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