राग: ललित
प्राणपति विहरत श्री यमुना कूले ।
लुब्ध मकरंद के भ्रमर ज्यों बस भये,
देखि रवि उदय मानो कमल फूले ॥१॥
करत गुंजार मुरली जु ले सांवरो,
सुनत ब्रजवधू तन सुधि जु भूले ।
चतुर्भुज दास श्री यमुने प्रेमसिंधु में,
लाल गिरिधरनवर हरखि झूले ॥२॥
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