राग : आसावरी
नेह कारन श्री यमुने प्रथम आई ।
भक्त के चित्त की वृत्ति सब जानके,
तहांते अतिहि आतुर जु धाई ॥१॥
जाके मन जैसी इच्छा हती ताहिकी,
तैसी ही आय साधजु पुजाई ।
नंददास प्रभु तापर रीझि रहे
जोई श्री यमुनाजी को जस जु गाई ॥२॥
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