राग : रामकली
नैन भरि देखि अब भानु तनया ।
केलि पिय सों करें भ्रमर तबहि परें,
श्रम जल भरत आनंद मनया ॥१॥
चलत टेढी होय लेत पिय को मोहि,
इन बिना रहत नहिं एक छिनया ।
रसिक प्रीतम रास करत श्री यमुना पास,
मानो निर्धनन की है जु धनया ॥२॥
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