राग : मल्हार
हरियारो सावन आयो,
देखो माई, हरियारो सावन आयो।
हर्यो टिपारो शीश बिराजत,
काछ हरी मन भायो॥१॥
हरी मुरली है, हरी संग राधे,
हरी भूमि सुखदाई।
हरी हरी वन राजत द्रुमवेली,
न्रुत्यत कुंवर कन्हाई॥२॥
हरी हरी सारी सखीजन पहरे,
चोली हरिरंग भीनी।
रसिक प्रीतम मन हरित भयो है,
सर्वस्व न्योछावर कीनी॥३॥
Saturday, August 11, 2007
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