राग : सारंग
सूर आयो सिर पर छाया आई पायनतर,
पंथी सब झुक रहे देख छाँह गहरी।।
धंधी जन छांड रहेरी धूपन के लिए,
पशु पंछी जीव जंतु चिरिया चुप रहरी ॥
व्रजके सुकुमार लोग दे दे कमार सोवे,
उपवन की व्यार्तामें पोढे पिय प्यारी ॥
सूर अलबेली चल काहेको डरत है ,
महाकी मध्य रात जैसे जेठ की दुपहरी॥
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