Friday, April 18, 2008

सूर आयो सिर पर छाया आई पायनतर...

राग : सारंग

सूर आयो सिर पर छाया आई पायनतर,

पंथी सब झुक रहे देख छाँह गहरी।।

धंधी जन छांड रहेरी धूपन के लिए,
पशु पंछी जीव जंतु चिरिया चुप रहरी ॥

व्रजके सुकुमार लोग दे दे कमार सोवे,

उपवन की व्यार्तामें पोढे पिय प्यारी ॥

सूर अलबेली चल काहेको डरत है ,

महाकी मध्य रात जैसे जेठ की दुपहरी॥

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