राग : देवगंधार
नैनभर देखो नंदकुमार।
जसुमती कुख चंद्रमा प्रगट्यों,
या व्रज को उजिंयार॥१॥
बन जिन जाऊ आज कोऊ,
गोसुत और गाय गुवार।
अपने अपने भेष सबे मिल,
लावो विविध सिंगार॥२॥
हरद दूब अक्षत दधी कुमकुम,
मंडित करो दुवार।
पुरो चौक विविध मुक्ताफल,
गाओ मंगलचार॥३॥
चहु वेदधूनी करत महामुनी,
होत नक्षत्र विचार।
उदयो पुन्यको पुंज सांवरो,
सकल सिद्दी दातार॥४॥
गोकुलवधु निरखि आनंदित,
सुन्दरताको सार।
दास चत्रभुज प्रभु सब सुखनिधि,
गिरिधर प्रण आधार॥५॥
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1 comment:
हिंदुस्तानी शास्त्रीय संगीत पर इतना अच्छा ब्लॉग हिंदी में और कोई नहीं देखा . इतनी सुंदर बंदिशों का संग्रह है कि क्या कहूं . पिछले एक साल से लगातार ब्लॉग लिख और पढ रहा हूं,पर इस बेहतरीन ब्लॉग पर मेरी नज़र नहीं पड़ी यह बहुत आश्चर्य की बात है और मेरे लिए शर्म की बात भी .
इस खजाने को सबके साथ बांटने के लिए और हिंदुस्तानी शास्त्रीय संगीत की समृद्ध परम्परा से साक्षात्कार करवाने के लिए आप साधुवाद की पात्र हैं . आपका यह काम बड़ा काम है,महत्वपूर्ण काम है .
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