Sunday, September 9, 2007

वारि मेरे लटकन पग धरो छतियाँ.....

राग : आसावरी

वारि मेरे लटकन पग धरो छतियाँ ।
कमलनयन बलि जाऊ वदनकी,
शोभित नेन्ही नेन्ही दूधकी द्वे दतियाँ॥१॥

यह मेरी यह तेरी यह बाबा नन्दजूकी,
यह बलभद्र भैया की।
यह ताकि जो झूलावे तेरो पलना॥
ईंहां ते चली खुर खात पीवत जल,
परिहरो रुदन हसो मेरे ललना॥२॥

रुनक झूनक बाजत पैजनियाँ,
अलबल कलबल, बोलो मृदु बनियाँ।
परमानंद प्रभु त्रिभुवन ठाकुर,
जाय झूलावे बाबा नंद्जू की रनियाँ॥३॥

17 comments:

Anonymous said...

इस पद का अर्थ भी समझा दें राधे!

KKPANDEY​ said...

https://youtu.be/uRuFrGUY0f4?si=yLLnPQlGxqRVkFQq

Anonymous said...

ये पद भगवान के नामकरण से पहले का है। भगवान का कोई नाम नहीं है अतः स्वभाव से माता उन्हें 'लटकन' बुला रही हैं।
यशोदा कहती हैं - हे मेरे लटकन तुझपे वारी जाऊं!
भगवान पालने में रहते हैं ; हाथ-पैर फेंकते हैं ; तो माता के छाती पर पैरों से स्पर्श होता है।चलना सीखे नहीं हैं तो - यशोदा कहतीं हैं तुम जमीन पर चलना मत सीखो मेरे सीने पर पैर रखकर चलना सीखो।

पहली पंक्ति में लटकन कहा दूसरी में कमलनयन कहा है। माता कहतीं हैं - रे कमलनयन! तेरे मुख पे वारी जाऊं जिसमें दूध के दो छोटे-छोटे दाँत सुशोभित हो रहे हैं।

गिरिधर लालजी रो रहे हैं तो उन्हें चुप कराने के लिये माता को गिनती सूझी। यशोदा उन्हें हाथ पकड़कर उनकी ऊंगली गिना रही हैं । उनके घर में जो ग‌उऐं हैं उसे निर्दिष्ट कर माता उंगलियों को पकड़कर कहती हैं... यह मेरी, यह तेरी , यह बाबा नंद जूं की , यह बलभद्र भैया की, और पाँचवी उसकी जो तेरा पलना झुला रही है....।

Anonymous said...

बहुत सुंदर व्याख्या 🙏🙏🙏

Anonymous said...

Hari bol

Anonymous said...

Bahut sunder bhav h...

Anonymous said...

Thank you beautiful meaning

Anonymous said...

Jay ho waah adbhud

Anonymous said...

Lalan ki kripa se hme apke dwara ye bhav smjh aya

Anonymous said...

जय हो

Anonymous said...

Lakin ye adhuribh

Anonymous said...

कृपया दूसरे पद का अर्थ भी समझा दीजिए

Anonymous said...

Waah mere lalana

Anonymous said...

Haa prabhu

Anonymous said...

Anand a gya kripya pura samjhao

Anonymous said...

Radhe Radhe atyant sundar 👌🏻

Anonymous said...

जय जय श्री lalan
बहुत सुंदर vyakhya