राग : इमन
सेन कामकी लायो, सो सावन आयो।
चल सखी जुलिये, सुरंग हिंडोरे,
कीजे श्याममन भायो॥१॥
हावभाव के खंभ मनोहर,
कच घन गगन सुहायो।
कामनृपति वृषभाननंदिनी,
रसिकराय वर पायो॥२॥
सेन कामकी लायो, सो सावन आयो।
चल सखी जुलिये, सुरंग हिंडोरे,
कीजे श्याममन भायो॥१॥
हावभाव के खंभ मनोहर,
कच घन गगन सुहायो।
कामनृपति वृषभाननंदिनी,
रसिकराय वर पायो॥२॥
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