राग : सुहो
कमल मुख देखत, तृप्त ना होय ।
यह सुख कहा दुहागीन जाने, रही निसाभर सोय ॥ १॥
ज्यों चकोर चाहत उडुराजे, चंद वदन रही जोय ।
नेक अकोर देत नही राधा, चाहत पीयरी निचोय ॥ २॥
उन् तो अपनों सर्वस्व दीनो, एक प्राण वपु दोय ।
भजन भेद न्यारो परमानन्द, जानत विरला कोय ॥ ३॥
Wednesday, July 11, 2007
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