राग : काफ़ी
नेह लग्यो मेरो श्याम सुंदरसो । नेह लग्यो मेरो श्याम सुंदरसो ॥
आयो वसंत सभी बन फुले । खेतन फूली है सरसों ।
मैं पीरी पियाके विरहसो । निकसत ताण अधरसो ॥ कहो जाय बंसीवरसो ॥
फागुन में सब होरी खेलत है, अपने अपने वरसो ।
पिय के वियोग जोगन व्हे निकरी , धूर उड़ावत करसो । चली मथुराकी डगरसो ॥
ऊधो जाय द्वारका कहियो, इतनी अरज मेरी हरीसों ।
विरहव्यथासे जियरा डरत है , जबते गए हरी घरसो । दरस देखनको हों तरसो ॥
सूरदास मेरी इतनी अरज है, कृपासिंधु गिरिधरसों ।
गसेरी नदियाँ, नाव पुरानी, अबके आय उबारो सागारसो । अरज मेरी राधावरसों ॥