राग : ललित
जागत रैंन गई, पिया बिन
जागत रैंन गई।
अवधि वदी गए, अजहू न आये,
बड़ी बेर भयीं॥१॥
कछु कहत हो, करत कछु और,
कौन सीख दई।
सांच नही तेरो एको अंग,
कहाँजू रीत लई॥२॥
कैसे कीजे विश्वास, भये हो विषई।
रसिक प्रीतम रावरी, छीन छीन गती नई॥३॥
Saturday, January 12, 2008
Friday, January 11, 2008
तुमसो बोलवेकी नाही....
राग : ललित
बोलवेकी नाहीं, तुमसो बोलवेकी नाहीं।
घर घर गमन करत सुंदरपिय,
चित्त नाही एक ठाहीं॥१॥
कहा कहो शामल घन तुमसो,
समज देख मन माहीं।
सूरदास प्रभु प्यारीके वचन सुन,
ह्रदय मांझ मुस्कानी॥२॥
बोलवेकी नाहीं, तुमसो बोलवेकी नाहीं।
घर घर गमन करत सुंदरपिय,
चित्त नाही एक ठाहीं॥१॥
कहा कहो शामल घन तुमसो,
समज देख मन माहीं।
सूरदास प्रभु प्यारीके वचन सुन,
ह्रदय मांझ मुस्कानी॥२॥
कब देखो मेरी और....
राग : ललित
कब देखो मेरी और, नागर नन्दकिशोर,
बीनती करत भयो भोर।
हम चितवत तुम चितवत नाही,
मेरे कर्म कठोर॥१॥
जनम जनम की दासी तिहारी, तापर इतनो जोर।
सूरदासप्रभु तुम्हारे रोम पर,
वारो कंचन खोर॥२॥
कब देखो मेरी और, नागर नन्दकिशोर,
बीनती करत भयो भोर।
हम चितवत तुम चितवत नाही,
मेरे कर्म कठोर॥१॥
जनम जनम की दासी तिहारी, तापर इतनो जोर।
सूरदासप्रभु तुम्हारे रोम पर,
वारो कंचन खोर॥२॥
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