राग : पूर्वी
छोटोसो कन्हैया एक, मुरली मधुर छोटी,
छोटे छोटे ग्वाल बाल छोटी पाघ सिरकी।
छोटेसे कुंडल कान, मुनीन के छूटे ध्यान,
छूटे पट छूटी लट अलकनकी॥१॥
छोटीसी लकुट हाथ,
छोटे दास बच्छ लिए साथ,
छोटेसे बनेरी कान्ह,
गोपी देखन आई घरघरकी।
नंददास प्रभु छोटे, भेदभाव मोटे मोटे,
खायो है माखन शोभा देखो ये बदन की॥२॥
Saturday, September 15, 2007
मैयारी तू मोहि बडो कर लैरी....
राग : सारंग
मैयारी तू मोहि बडो कर लैरी।
दूध दही धृत माखन मेवा,
जो मांगो सो दैरी॥१॥
कछु दुराव राखै जिन मोसो,
जोई मोई रुचेरी।
रंगभूमि में कंस पछारौ,
कहे कथा सुखसौरी॥२॥
सूरदास स्वामीकी लीला,
मथुरा वास करोरी।
सुंदरश्याम हसत जननीसो,
नन्दलालकी सौरी॥३॥
मैयारी तू मोहि बडो कर लैरी।
दूध दही धृत माखन मेवा,
जो मांगो सो दैरी॥१॥
कछु दुराव राखै जिन मोसो,
जोई मोई रुचेरी।
रंगभूमि में कंस पछारौ,
कहे कथा सुखसौरी॥२॥
सूरदास स्वामीकी लीला,
मथुरा वास करोरी।
सुंदरश्याम हसत जननीसो,
नन्दलालकी सौरी॥३॥
कहन लागे मोहन मैया मैया....
राग : नट
कहन लागे मोहन मैया मैया।
बावा बावा नंदरायसो,
अरु हलधरसो भैया भैया॥१॥
छगन मगन मधुसुदन माधो,
सब व्रज लेत बलैया।
नाचत मोर रहत संग उनके,
तोतरे बोल बुलैया॥२॥
दुरी खेलन जिन जाऊ मनोहर,
मारेगी कहुकी गैया।
मात यशोदा ठाड़ी टेरे,
ले ले नाम कन्हैया॥३॥
सब गोकुलमें आनंद उपज्यो,
घर घर होत बधैया।
नंदनंदंकी या छबि ऊपर,
परमानंद बलि जैया॥४॥
कहन लागे मोहन मैया मैया।
बावा बावा नंदरायसो,
अरु हलधरसो भैया भैया॥१॥
छगन मगन मधुसुदन माधो,
सब व्रज लेत बलैया।
नाचत मोर रहत संग उनके,
तोतरे बोल बुलैया॥२॥
दुरी खेलन जिन जाऊ मनोहर,
मारेगी कहुकी गैया।
मात यशोदा ठाड़ी टेरे,
ले ले नाम कन्हैया॥३॥
सब गोकुलमें आनंद उपज्यो,
घर घर होत बधैया।
नंदनंदंकी या छबि ऊपर,
परमानंद बलि जैया॥४॥
जब मेरो मोहन चलेगो घुटुरुवन.....
राग : सारंग
जब मेरो मोहन चलेगो घुटुरुवन,
तब हों करोंगी बधाई।
सर्वस्व वार देहोंगी,
तिही चीनू मैया कही तुतराई॥१॥
यशोदाको वचन सुनत केशोंप्रभु,
जननी प्रीति जानी अधिकाई।
नंद्सुवन सुख दियो मातको,
अति कृपाल मेरो नंद्लाई॥२॥
जब मेरो मोहन चलेगो घुटुरुवन,
तब हों करोंगी बधाई।
सर्वस्व वार देहोंगी,
तिही चीनू मैया कही तुतराई॥१॥
यशोदाको वचन सुनत केशोंप्रभु,
जननी प्रीति जानी अधिकाई।
नंद्सुवन सुख दियो मातको,
अति कृपाल मेरो नंद्लाई॥२॥
Sunday, September 9, 2007
वारि मेरे लटकन पग धरो छतियाँ.....
राग : आसावरी
वारि मेरे लटकन पग धरो छतियाँ ।
कमलनयन बलि जाऊ वदनकी,
शोभित नेन्ही नेन्ही दूधकी द्वे दतियाँ॥१॥
यह मेरी यह तेरी यह बाबा नन्दजूकी,
यह बलभद्र भैया की।
यह ताकि जो झूलावे तेरो पलना॥
ईंहां ते चली खुर खात पीवत जल,
परिहरो रुदन हसो मेरे ललना॥२॥
रुनक झूनक बाजत पैजनियाँ,
अलबल कलबल, बोलो मृदु बनियाँ।
परमानंद प्रभु त्रिभुवन ठाकुर,
जाय झूलावे बाबा नंद्जू की रनियाँ॥३॥
वारि मेरे लटकन पग धरो छतियाँ ।
कमलनयन बलि जाऊ वदनकी,
शोभित नेन्ही नेन्ही दूधकी द्वे दतियाँ॥१॥
यह मेरी यह तेरी यह बाबा नन्दजूकी,
यह बलभद्र भैया की।
यह ताकि जो झूलावे तेरो पलना॥
ईंहां ते चली खुर खात पीवत जल,
परिहरो रुदन हसो मेरे ललना॥२॥
रुनक झूनक बाजत पैजनियाँ,
अलबल कलबल, बोलो मृदु बनियाँ।
परमानंद प्रभु त्रिभुवन ठाकुर,
जाय झूलावे बाबा नंद्जू की रनियाँ॥३॥
Friday, September 7, 2007
नैनभर देखो नंदकुमार....
राग : देवगंधार
नैनभर देखो नंदकुमार।
जसुमती कुख चंद्रमा प्रगट्यों,
या व्रज को उजिंयार॥१॥
बन जिन जाऊ आज कोऊ,
गोसुत और गाय गुवार।
अपने अपने भेष सबे मिल,
लावो विविध सिंगार॥२॥
हरद दूब अक्षत दधी कुमकुम,
मंडित करो दुवार।
पुरो चौक विविध मुक्ताफल,
गाओ मंगलचार॥३॥
चहु वेदधूनी करत महामुनी,
होत नक्षत्र विचार।
उदयो पुन्यको पुंज सांवरो,
सकल सिद्दी दातार॥४॥
गोकुलवधु निरखि आनंदित,
सुन्दरताको सार।
दास चत्रभुज प्रभु सब सुखनिधि,
गिरिधर प्रण आधार॥५॥
नैनभर देखो नंदकुमार।
जसुमती कुख चंद्रमा प्रगट्यों,
या व्रज को उजिंयार॥१॥
बन जिन जाऊ आज कोऊ,
गोसुत और गाय गुवार।
अपने अपने भेष सबे मिल,
लावो विविध सिंगार॥२॥
हरद दूब अक्षत दधी कुमकुम,
मंडित करो दुवार।
पुरो चौक विविध मुक्ताफल,
गाओ मंगलचार॥३॥
चहु वेदधूनी करत महामुनी,
होत नक्षत्र विचार।
उदयो पुन्यको पुंज सांवरो,
सकल सिद्दी दातार॥४॥
गोकुलवधु निरखि आनंदित,
सुन्दरताको सार।
दास चत्रभुज प्रभु सब सुखनिधि,
गिरिधर प्रण आधार॥५॥
सब मिल आवो, गाओ बजाओ.....
राग : भैरव
सब मिल आवो, गाओ बजाओ।
कनकथाल भर भर मुक्ता फल,
न्योछावर ले कराओ॥१॥
नव नव पल्लव बंधनमाल,
द्वार द्वार बंधावन आनंदघन।
प्रभु जन्म सुनतहि,
लाग्यों सुजस सुहावन॥२॥
सब मिल आवो, गाओ बजाओ।
कनकथाल भर भर मुक्ता फल,
न्योछावर ले कराओ॥१॥
नव नव पल्लव बंधनमाल,
द्वार द्वार बंधावन आनंदघन।
प्रभु जन्म सुनतहि,
लाग्यों सुजस सुहावन॥२॥
Saturday, September 1, 2007
बादर झूम झूम बरसन लागे.....
राग : मल्हार
बादर झूम झूम बरसन लागे।
दामिनि दमकते, चोंक चमक श्याम,
घन की गरज सुन जागे ॥१॥
गोपी जन द्वारे, ठाडे नारी नर,
भींजत मुख देखन कारन अनुरागे।
छीतस्वामी गिरधरन श्री विट्ठल,
ओतप्रोत रस पागे ॥२॥
बादर झूम झूम बरसन लागे।
दामिनि दमकते, चोंक चमक श्याम,
घन की गरज सुन जागे ॥१॥
गोपी जन द्वारे, ठाडे नारी नर,
भींजत मुख देखन कारन अनुरागे।
छीतस्वामी गिरधरन श्री विट्ठल,
ओतप्रोत रस पागे ॥२॥
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