Tuesday, May 15, 2007

३३) श्री यमुने तुमसी एक हो जु तुमहीं....

राग : केदार

श्री यमुने तुमसी एक हो जु तुमहीं ।
करि कृपा दरस, निसवासर दीजिये,
तिहारे गुनगान को रहत उद्यम ही ॥१॥

तिहारे पाये ते, सकल निधि पावहीं,
चरण्कमल चित्त, भ्रमर भ्रमहीं ।
कृष्णदासनि कहें, कौन यह तप कियो,
तिहारे ढींग रहत है लता द्रुम ही ॥२॥

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