Sunday, August 26, 2007

सेन कामकी लायो.....


राग : इमन

सेन कामकी लायो, सो सावन आयो।
चल सखी जुलिये, सुरंग हिंडोरे,
कीजे श्याममन भायो॥१॥

हावभाव के खंभ मनोहर,
कच घन गगन सुहायो।
कामनृपति वृषभाननंदिनी,
रसिकराय वर पायो॥२॥

लालन तो हो झूलो जो तुम.....

राग : ईमन

लालन तो हो झूलो जो तुम,
हौले हौले झूलावो।
डरपत हो घनश्याम मनोहर,
अपने कंठ लगायो॥१॥

हो उतरो तुम, झूलो मेरे मोहन,
जैसे जैसे गाँउ, तैसे तैसे गाओ।
रसिकप्रीतम पिय यह बिनती,
तनकी तपत बुजाओ॥२॥

राखी बांधत बहिन सुभद्रा.....

राग : सारंग

राखी बांधत बहिन सुभद्रा,
बल अरु श्री गोपाल के।
कंचन रत्न थार भरि मोती,
तिलक दियो नंदलाल के॥१॥

आरति करत रोहिणी जननी,
अंतर बढे अनुराग के।
आसकरण प्रभु मोहन नागर,
प्रेम पुंज ब्रज बाल के॥२॥

रक्षा बंधन को दिन आयो....

राग : सारंग

रक्षा बंधन को दिन आयो।
गर्गादि सब देव बुलाये,
लालहिं तिलक बनायो॥१॥

सब गुरुजन मिल देत असीस,
चिरंजीयो ब्रजरायो।
बाढो प्रताप नित या ढोटा को,
परमानंद जस गायो॥२॥

पवित्रा पहरे को दिन आयो.....

राग : सारंग

पवित्रा पहरे को दिन आयो।
केसर कुमकुम रसरंग,
वागो कुंदन हार बनायो॥१॥

जय जयकार होत वसुधा पर,
सुर मुनि मंगल गायो।
पतित पवित्र किये सुख सागर,
सूरदास यश गायो॥२॥

पवित्रा पहरे परमानंद....

राग : सारंग

पवित्रा पहरे परमानंद।
श्रावन सुदी एकादशी के दिन,
गिरिधर परमानंद॥१॥

श्री वृषभाननंदिनी निजकर,
ग्रथित विविध पटभांत।
ता मध्य सुभग सुवर्ण सुत्रसो,
पोई नवमती जात॥२॥

पवित्रा पहरे हिंडोरे जुलत,
दोउ आनंद कंद।
जमुना पुलिनमें कुंज मनोहर,
गावत परमानंद॥३॥

Saturday, August 18, 2007

ग्वाल देत है हेरी घर घर....

राग : सारंग

घर घर ग्वाल देत है हेरी।
बाजत ताल मृदुंग बाँसुरी,
ढोल दमामा भेरी ॥१॥

लूटत झपट्त खात मिठाई,
कही ना सकत कोऊ फेरी।
उन्मद ग्वाल करत कोलाहल,
व्रज वनिता सब घेरी॥२॥

ध्वजा पताका तोरनमाला,
सबे सिंगारी सेरी।
जय जय कृष्ण कहत परमानंद,
प्रगट्यो कंसको वेरी॥३॥

Friday, August 17, 2007

नई बात सुन आई....

राग : मल्हार

हों तो एक नई बात सुन आई।
महरि जसोदा ढोटा जायो,
आंगन बजत बधाई ॥१॥

कहिये कहा कहत नहि आवे,
रतन भूमि छबि छाई ।
नाचत बिरध तरुण अरु बालक,
गोरस कीच मचाई ॥२॥

द्वारें भीतर गोप ग्वालन की,
वरनों कहा बढाई ।
सूरदास प्रभु अंतरयामी,
नंदसुवन सुखदाई ॥३॥

Saturday, August 11, 2007

हरियारो सावन आयो...

राग : मल्हार

हरियारो सावन आयो,
देखो माई, हरियारो सावन आयो।
हर्यो टिपारो शीश बिराजत,
काछ हरी मन भायो॥१॥

हरी मुरली है, हरी संग राधे,
हरी भूमि सुखदाई।
हरी हरी वन राजत द्रुमवेली,
न्रुत्यत कुंवर कन्हाई॥२॥

हरी हरी सारी सखीजन पहरे,
चोली हरिरंग भीनी।
रसिक प्रीतम मन हरित भयो है,
सर्वस्व न्योछावर कीनी॥३॥

Sunday, August 5, 2007

हिंडोरे जुलन के दीन आये.....,


राग : मल्हार
जुलन के दीन आये,
हिंडोरे माई जूलन के दीन आये।
गरजत गगन, दामिनी कोंधत,
राग मल्हार जमाये ॥१॥

कंचन खंभ सुढार बनाए,
बीचबीच हीरा लाए ।
डांडी चार सुदेश सुहाई,
चोकी हेम जराये ॥२॥

नाना विधिके कुसुम मनोहर,
मोतीन जुमक छाए ।
मधुर मधुर ध्वनि वेणु बजावत,
दादुर मोर जिवाये ॥३॥

रमकन जमकन पियप्यारीकी,
किंकिणी शब्द सुहाये ।
चतुर्भुजप्रभु गिरिधरनलाल संग,
मानिनी मंगल गाये ॥४॥