Sunday, March 16, 2008

व्रज में हरी होरी मचाई.....



हरी होरी मचाई , व्रज में हरी होरी मचाई ।
एतते आयी सुधर राधिका उतते कुंवर कन्हाई॥

हिलमिल फाग परस्पर खेले, शोभा वरनी न जायी,
नन्द घर बजत बधाई ।

बाजत ताल मृदुंग बाँसुरी बीना डफ सहनाई ।
उड़त अबीर गुलाल कुमकुम । रह्यो सकल व्रज छायी ।
मानो मधवा जर लायी ॥

ले ले हाथ कनक पिचकारी सन्मुख चले चलाई।
छिरकत रंग अंग सब भीजे जुक जुक चाचर गाई,
परस्पर लोग लुगाई ॥

राधा सेन दई सखीयन को झुंड झुंड गहीर आई।
लपट जपट गई श्यामसुंदरसो, परवश पकर ले आई
लालाजी को नाच नचाई ॥

छीन लई मुरली पीताम्बर सीर ते चूनरी उढाई ।
वेनी भाल नयन विच काजर, नक्वेसर पहेराई
मानो नई नार बनाई ॥

हसत है मुख मोड़ मोड़ के कहा गई चतूराई ।
कहा गए तेरे तात नंदजी कहा जसोदा माई
तुम्हे अब ले छुड़ाई ॥

फगुवा दिए बीन जान न पाओ कोटी करो ऊपाय ।
लेहू काढ कसर सब दीन की तुम चीत्चोर चवाई
बहुत दधी माखन खाई ॥

आजू भोरही नन्दपौरी, व्रज़नारिन धूम मचाई....

राग : बिभास

आजू भोरही नन्दपौरी, व्रज़नारिन धूम मचाई।
पकरी पानि गही नचाई पौरीया जसुमति पकरी नचाई ।१।

हरी भागे, हलधरजू भागे, नंदमहरहू घेरे

तबही मोहन निकसी द्वारव्हे, सखा नाम ले टेरे ।२।

द्वार पुकार सुनत नही कोऊ, तब हरी चढ़े अटारी

आओ रे आओ सखा संग घेरे , घर घेर्यो व्रजनारी ।३।

सुनत टेरे संगी सब दौरे जब अपने धाम ।

अर्जुन तोक कृष्ण मधुमंगल सुबल सुबाहु श्रीदामा ।४।

ग्वालिनी घेर परी जब रोकी आनन पाए नेरे।

चंद्रावली ललितादी आदि श्याम मनोहर घेरे । ५ ।

कित जेहो वस् परे हमारे भजी न सको नन्दलाल ।

फगुवा में हम लेहे पीताम्बर वनमाल । ६।

केसरी डारी सिसते मुख पर शेरी मांड्त राधे ।

विष्णुदास प्रभु भुज गहि गाढे मनवांछित फल साधे ॥७॥