Wednesday, August 10, 2011

राग : मालकोंस

प्रात:  समय हरी नाम लीजिये, आनंद मंगल में दिन जाय
चक्रपाणी करुणामय केशव विघ्न विनाशन यादावराय .. १ .. 

कलिमल हरण तरण भवसागर भक्त चिंतामणि कामधेनु 
ऐसो समर्थ नाम हरी को वंदनिक पावन पद रेनू  .. २ ..

शिव विरंची इन्द्रादि देवता मुनिजन करत नाम की आस 
भक्त वत्सल हरिनाम कल्पतरु वरदायक पर्मनानंददास .. ३ .. 

Friday, April 18, 2008

सूर आयो सिर पर छाया आई पायनतर...

राग : सारंग

सूर आयो सिर पर छाया आई पायनतर,

पंथी सब झुक रहे देख छाँह गहरी।।

धंधी जन छांड रहेरी धूपन के लिए,
पशु पंछी जीव जंतु चिरिया चुप रहरी ॥

व्रजके सुकुमार लोग दे दे कमार सोवे,

उपवन की व्यार्तामें पोढे पिय प्यारी ॥

सूर अलबेली चल काहेको डरत है ,

महाकी मध्य रात जैसे जेठ की दुपहरी॥

Sunday, April 6, 2008

फूल भवन में गिरिधर बैठे फूलन को शोभीत सिंगार....

राग : कान्हरो

फूल भवन में गिरिधर बैठे फूलन को शोभीत सिंगार।

फूलन को कटी बन्यो पिछोरा फूलन बांधे पेंच संवार ॥

फूलनकी बेनी जू बनी सीर फूलन के जू बने सब हार ।

फूलन के मुक्त छबी छाजत फूलन लटकन सरस संवार ॥

करन फूल फूलन कर पॉहोची गेंद फूल जल करत विहार ।

राधा माधो हसत परस्पर दास निरखत डारत तन वार ॥

Sunday, March 16, 2008

व्रज में हरी होरी मचाई.....



हरी होरी मचाई , व्रज में हरी होरी मचाई ।
एतते आयी सुधर राधिका उतते कुंवर कन्हाई॥

हिलमिल फाग परस्पर खेले, शोभा वरनी न जायी,
नन्द घर बजत बधाई ।

बाजत ताल मृदुंग बाँसुरी बीना डफ सहनाई ।
उड़त अबीर गुलाल कुमकुम । रह्यो सकल व्रज छायी ।
मानो मधवा जर लायी ॥

ले ले हाथ कनक पिचकारी सन्मुख चले चलाई।
छिरकत रंग अंग सब भीजे जुक जुक चाचर गाई,
परस्पर लोग लुगाई ॥

राधा सेन दई सखीयन को झुंड झुंड गहीर आई।
लपट जपट गई श्यामसुंदरसो, परवश पकर ले आई
लालाजी को नाच नचाई ॥

छीन लई मुरली पीताम्बर सीर ते चूनरी उढाई ।
वेनी भाल नयन विच काजर, नक्वेसर पहेराई
मानो नई नार बनाई ॥

हसत है मुख मोड़ मोड़ के कहा गई चतूराई ।
कहा गए तेरे तात नंदजी कहा जसोदा माई
तुम्हे अब ले छुड़ाई ॥

फगुवा दिए बीन जान न पाओ कोटी करो ऊपाय ।
लेहू काढ कसर सब दीन की तुम चीत्चोर चवाई
बहुत दधी माखन खाई ॥

आजू भोरही नन्दपौरी, व्रज़नारिन धूम मचाई....

राग : बिभास

आजू भोरही नन्दपौरी, व्रज़नारिन धूम मचाई।
पकरी पानि गही नचाई पौरीया जसुमति पकरी नचाई ।१।

हरी भागे, हलधरजू भागे, नंदमहरहू घेरे

तबही मोहन निकसी द्वारव्हे, सखा नाम ले टेरे ।२।

द्वार पुकार सुनत नही कोऊ, तब हरी चढ़े अटारी

आओ रे आओ सखा संग घेरे , घर घेर्यो व्रजनारी ।३।

सुनत टेरे संगी सब दौरे जब अपने धाम ।

अर्जुन तोक कृष्ण मधुमंगल सुबल सुबाहु श्रीदामा ।४।

ग्वालिनी घेर परी जब रोकी आनन पाए नेरे।

चंद्रावली ललितादी आदि श्याम मनोहर घेरे । ५ ।

कित जेहो वस् परे हमारे भजी न सको नन्दलाल ।

फगुवा में हम लेहे पीताम्बर वनमाल । ६।

केसरी डारी सिसते मुख पर शेरी मांड्त राधे ।

विष्णुदास प्रभु भुज गहि गाढे मनवांछित फल साधे ॥७॥

Sunday, February 24, 2008

नेह लग्यो मेरो श्याम सुंदरसो...

राग : काफ़ी

नेह लग्यो मेरो श्याम सुंदरसो । नेह लग्यो मेरो श्याम सुंदरसो ॥

आयो वसंत सभी बन फुले । खेतन फूली है सरसों ।

मैं पीरी पियाके विरहसो । निकसत ताण अधरसो ॥ कहो जाय बंसीवरसो ॥

फागुन में सब होरी खेलत है, अपने अपने वरसो ।

पिय के वियोग जोगन व्हे निकरी , धूर उड़ावत करसो । चली मथुराकी डगरसो ॥

ऊधो जाय द्वारका कहियो, इतनी अरज मेरी हरीसों ।

विरहव्यथासे जियरा डरत है , जबते गए हरी घरसो । दरस देखनको हों तरसो ॥

सूरदास मेरी इतनी अरज है, कृपासिंधु गिरिधरसों ।

गसेरी नदियाँ, नाव पुरानी, अबके आय उबारो सागारसो । अरज मेरी राधावरसों ॥

Tuesday, February 12, 2008

नवल वसंत नवल वृन्दावन....

राग : वसंत

नवल वसंत नवल वृन्दावन, नवल ही फुले फूल ।
नवल ही कान्ह नवल बनी गोपी, निर्तत एक ही तूल ॥१॥

नवल गुलाल उडे रंग बुका, नवल वसंत अमूल।
नवल ही छींट बनी केसरकी, चेट्त मन्मथ शूल ॥२॥

नवल ही ताल पखावज बाजत, नवल पवनके झूल।
नवल ही बाजे बाजत बहोत, कालिंदी के कूल ॥३॥