Tuesday, June 5, 2007

१४) प्राणपति विहरत श्री यमुना कूले..

राग: ललित

प्राणपति विहरत श्री यमुना कूले ।
लुब्ध मकरंद के भ्रमर ज्यों बस भये,
देखि रवि उदय मानो कमल फूले ॥१॥

करत गुंजार मुरली जु ले सांवरो,
सुनत ब्रजवधू तन सुधि जु भूले ।
चतुर्भुज दास श्री यमुने प्रेमसिंधु में,
लाल गिरिधरनवर हरखि झूले ॥२॥

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