Tuesday, June 5, 2007

१५) वारंवार श्रीयमुने गुणगान कीजे...

राग : ललित

वारंवार श्रीयमुने गुणगान कीजे ।
एहि रसनातें भजो नामरस अमृत,
भाग्य जाके हैं सोई जु पीजे ॥१॥

भानु तनया दया अति ही करुणामया,
इनहीं की कर आस अब सदाई जीजे ।
चतुर्भुजदास कहे सोई प्रभु पास रहे
जोइ श्री यमुनाजी के रस जु भीजे ॥२॥

No comments: