Wednesday, June 6, 2007

११) धन्य श्री यमुने निधि देनहारी....

राग : मालकोंस

धन्य श्री यमुने निधि देनहारी ।
करत गुणगान अज्ञान अध दूरि करि,
जाय मिलवत पिय प्राणप्यारी ॥१॥

जिन कोउ सन्देह करो बात चित्त में धरो,
पुष्टिपथ अनुसरो सुखजु कारी ।
प्रेम के पुंज में रासरस कुंज में,
ताही राखत रसरंग भारी ॥२॥

श्री यमुने अरु प्राणपति प्राण अरु प्राणसुत,
चहुजन जीव पर दया विचारी ।
छीतस्वामी गिरिधरन श्री विट्ठल
प्रीत के लिये अब संग धारी ॥३॥

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