Wednesday, May 16, 2007

२९) रास रससागर, श्री यमुने जु जानी...

राग : गौड सारंग

रास रससागर, श्री यमुने जु जानी ।
बहत धारा तन प्रतिछन नूतन,
राखत अपने उर मां जु ठानी ॥१॥

भक्त को सहि भार हेतु जो प्रान आधार,
अति हि बोलत मधुर मधुर बानी ।
श्री विट्ठल गिरिधरन बस किये,
कौन पें जात महिमा बखानी ॥२॥

No comments: