Sunday, August 26, 2007

लालन तो हो झूलो जो तुम.....

राग : ईमन

लालन तो हो झूलो जो तुम,
हौले हौले झूलावो।
डरपत हो घनश्याम मनोहर,
अपने कंठ लगायो॥१॥

हो उतरो तुम, झूलो मेरे मोहन,
जैसे जैसे गाँउ, तैसे तैसे गाओ।
रसिकप्रीतम पिय यह बिनती,
तनकी तपत बुजाओ॥२॥

1 comment:

Anonymous said...

पुष्टिमार्गी संगीत के अविभाज्य अंग अष्टछाप के कवियों के पदों की प्रस्तुति अत्यंत महत्वपूर्ण उपक्रम है . कृपया शब्दों की वर्तनी पर विशेष ध्यान दें . जैसे 'झूलो' का 'जुलो' हो गया है .