Saturday, August 18, 2007

ग्वाल देत है हेरी घर घर....

राग : सारंग

घर घर ग्वाल देत है हेरी।
बाजत ताल मृदुंग बाँसुरी,
ढोल दमामा भेरी ॥१॥

लूटत झपट्त खात मिठाई,
कही ना सकत कोऊ फेरी।
उन्मद ग्वाल करत कोलाहल,
व्रज वनिता सब घेरी॥२॥

ध्वजा पताका तोरनमाला,
सबे सिंगारी सेरी।
जय जय कृष्ण कहत परमानंद,
प्रगट्यो कंसको वेरी॥३॥

1 comment:

उन्मुक्त said...

आपने कविताओं पर अलग अलग राग के नाम लिख रखें है। इन रागों का क्या महत्व है यह कब प्रयोग किये जाते हैं। इसके बारे में भी कुछ बताइये।