Thursday, May 10, 2007

भोरही कान्ह करत मोसो झगरो



भोर ही कान्ह करत मोसो झगरो ।
सबन छांडी करत हठ मोसो, नित्य उठ रोकी रहत है डगरो ॥१॥
गोरस दाण सुन्यो नही देख्यो , किन लिखी दियो दिखाओ कगरो ।
बिना बोहना छुवन नही देहो , यह सब छिनी खाऊ किन ससुरो ॥२॥
चुम्बत मुख उर लावत पकरत, टेव ना गयी जुकत नही अगरो ।
परमानंद सयानी ग्वालिनी, छांडी नही धरतहो पगरो ॥३॥

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